“जीवन में आप किससे सलाह ले रहे हैं, यह जानना बहुत महत्त्वपूर्ण है |क्योंकि दुर्योधन अपने मामा शकुनी से सलाह लेता था औरधनुर्धर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से”
दुनिया में जब मामा की बात आती है तो दो मामा हों की याद आ जाती है पहले मामा कंस और दूसरे मामा शकुनी क्या आपको मालूम है कि कौरवों का अंत करने का प्रण जो है पांडवों ने नहीं सबसे पहले शकुनी ने लिया था जो कि उनका अपना मामा था शकुनी ने एक वादा किया था एक प्रण किया था अपने मरते हुए पिता के पार्थिव शरीर से कि देखिए मैं जो है पूरे हस्तिनापुर को बर्बाद कर दूंगा बस यह प्रण ले लेता हूं कौन थे शकुनी मामा क्या है वह कसम क्या है वह प्रण क्या है पूरी कहानी कथाएं विदर ज कार्तिक में आज की कथा मामा शकुनी की मामा शकुनी को अपनी कुटिल बुद्धि के लिए कुख्यात माना जाता है प्रख्यात कहना सही नहीं होगा क्योंकि उनकी बुद्धि ऐसी थी जिसने पूरे हस्तिनापुर को बर्बाद कर दिया कौरवों के मामा श्री शकुनी मामा कौरवों के शुभ चिंतक माने गए कदम-कदम पर दुर्योधन का मार्गदर्शन करते रहे दुर्योधन ने भी अपने मामा की इच्छा के बगैर एक कदम नहीं उठाया लेकिन यह बात माता गांधारी को खटकती थी पिता धृतराष्ट्र को खटकती थी आपको बताऊंगा कि किस तरीके से शकुनी जो है कौरवों का भी दुश्मन था शकुनी गांधार नरेश राजा सुवाल के पुत्र थे शकुनी का जन्म गांधार के राजा सुवाल के राज प्रसाद में हुआ था माता गांधारी के छोटे भाई थे और जन्म से ही कहते हैं कि कुटिल बुद्धि के स्वामी थे राजा सुवाल को अपना सबसे छोटा बेटा बहुत प्रिय था कई सारे छोटे-छोटे राज्य मिलकर के आर्याना क्षेत्र बना था और इसी क्षेत्र में गांधार राज्य था जो कि आज के नॉर्थ अफगानिस्तान के एरिया में था जो उस काल में गांधार कहा जाता था कंबोज के पास था और हिंदू कुष पर्वत माला के समीप था जो गांधार है |
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Hindi – 12
वही गांधार का अपभ्रंश यानी कि बिगड़ा हुआ नाम है कौरवों को छल और कपट की राह सिखाने वाले शकुनी ने उन्हें पांडवों का विनाश करने के लिए पग पग पर मार्गदर्शन किया लेकिन उसके मन में कौरवों के लिए भी बुरी जो है सोच थी एक बुरा विचार था कि मुझे इनका भी अंत कर देना है इस कथा को समझने के लिए थोड़ा सा पीछे चलना पड़ेगा जो गांधार की राजकुमारी थी उनके रूप की चर्चा पूरे आर्याव में थी और पितामह भीष्म ने सोचा था कि जो युवराज हैं धृतराष्ट्र उनका विवाह करवाया जाए गांधार की राजकुमारी से पहले उन्होंने सोचा कि गांधारी का अपहरण करके लाया जाए लेकिन अंबा और अंबालिका ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया पिता म भीष्म जो थे वो गांधार की राजसभा में धृतराष्ट्र के लिए रिश्ता लेकर के गए लेकिन उन्हें मालूम था कि उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया जाएगा तब पितामह भीष्म ने क्रोध पूर्ण अंदाज में कहा कि मैं तुम्हारे इस छोटे से साम्राज्य पर चढ़ाई करूंगा और इसे समाप्त कर दूंगा अंततः जो राजा सुबल थे उनको पितामह के आगे झुकना पड़ा और बहुत क्रोध के साथ उनको अपनी सुंदर पुत्री का विवाह एक ऐसे राजकुमार के साथ करना पड़ा जो कि नेत्रहीन थे धृतराष्ट्र के साथ में गांधारी ने भी दुख दुख पूर्वक आजीवन जो है अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखने की प्रतिज्ञा कर ली गांधारी से महाराज धृतराष्ट्र को 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जो आगे चलकर के कौरव नाम से जाने गए कहा जाता है कि गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिष ने सलाह दी थी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है इसलिए पहला विवाह किसी और से कर दीजिए|
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फिर धृतराष्ट्र से कीजिए ज्योतिष के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया बाद में उस बकरे की बलि दी गई कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ज्योतिषियों ने ये सुझाव दिया था इसी वजह से गांधारी प्रतीकात्मक रूप से विधवा मान ली गई और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया ऐसा क्यों किया गया इसके पीछे और भी कारण थे गांधारी एक विधवा थी ये सच्चाई जो थी बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली ये बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किससे विवाह हुआ था और ना जाने क्यों जो है किस कारण वो मारा गया धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर के दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुवाल को माना धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुवाल को पूरे परिवार सहित कारागार में यानी कि जेल में डाल दिया कारागार में उन्हें खाने के लिए सिर्फ एक व्यक्ति का भोजन मिलता था केवल एक व्यक्ति के भोजन से पूरे परिवार का पेट कैसे भरता कुल मिलाकर के पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी राजा सुबान ने निर्णय लिया कि यह जो भोजन है सिर्फ उनके सबसे छोटे पुत्र को दिया जाए ताकि परिवार में कोई जीवित रहे और शकुनी जो है अपना जीवन का लक्ष्य या प्रण ना भूल जाए इसके लिए जब भी जेल में परिवार के साथ वो बंद थे तो सब परिवार वालों ने मिलकर के उसके पैर को तोड़ दिया ताकि अपने परिवार के अपमान की बात याद रहे और उसके बाद शकुनी जो है लंगड़ा करर चलने लगे एक-एक करके सुबल के सारे पुत्र मरने लगे सब लोग अपने-अपने हिस्से का चावल शकुनी को देते थे ताकि वो जीवित रह कर के कौरवों का नाश कर सके सुबान ने अपने सबसे छोटे बेटे शकुनी को प्रतिशोध के लिए तैयार किया मृत्यु से पहले सुबल ने धृतराष्ट्र से शकुनी को छोड़ने की विनती की जो धृतराष्ट्र ने मान ली राजा सुबल के सबसे छोटे पुत्र शकुनी जो थे वह अपनी आंखों के सामने परिवार का अंत होते हुए देख रहे थे जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज दुर्योधन ने देखा कि शकुनी जीवित बचे हैं तो अपने पिता से कहा कि इन्हें क्षमा कर दीजिए अपने देश वापस लौट जाने के लिए कहिए या यहीं रह जाए हमारे साथ तो शकुनी ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया और हस्तिनापुर में सबका विश्वास जीता 100 कौरवों का अभिभावक बन बैठा और अपने विश्वास पूर्ण कार्यों के चलते दुर्योधन ने शकुनी को अपना मंत्री नियुक्त कर लिया सबसे पहले उसने गांधारी और धृतराष्ट्र को अपने वश में किया फिर धृतराष्ट्र के भाई पांडु के विरुद्ध षड्यंत्र करवाया और धीरे-धीरे शकुनी ने दुर्योधन को भी अपनी बुद्धि के मोह पाश में बांध लिया शकुनी ने दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ युद्ध के लिए भड़काया और महाभारत के युद्ध की नीव रखी जिस पासे से पूरी महाभारत का युद्ध प्रारंभ हुआ |
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English – 12
Time is money | Saving Motivational Story in Hindi Time | Hindi Story | हिंन्दी कहानी । ગુજરાતી વાર્તાBest Motivational Story in Hindi | Short Motivational Story In Hindi | Life changing story | उस पासे की कहानी पहले आपको सुना देता हूं आगे बढ़ने से पहले शकुनी के बारे में कहा जाता है कि कभी भी जुए में नहीं हारा उसकी जीत का रहस्य उसके पासों में छुपा हुआ था बहुत कम लोग जानते हैं कि शकुनी के पास जुआ खेलने के लिए जो पासे थे वो उसके मृत पिता की हड्डी के थे शकुनी के पिता जब बंदी ग्रह में मरने लगे तो उन्होंने देखा कि उनके बेटे की चौसर में रुचि थी तो कहा बेटा तुम मेरी उंगलियों से पासे बना लेना इनमें मेरा आक्रोश मेरा दर्द भरा होगा जिससे चौसर के खेल में तुम्हें कोई हरा नहीं पाएगा पिता की उंगलियों से बने पासे से चौसर खेलने की वजह से शकुनी हर बार पांडवों को हराने में सफल हुआ अपने पिता की मृत्यु के पश्चात शकुनी ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थी और जुआ खिलने में पारंगत था तो फिर उन उंगलियों से पासे बना लिए थे शकुनी की ये जो चाल थी सिर्फ पांडवों का ही नहीं बल्कि कौरवों का भी विनाश करना चाहती थी क्योंकि शकुनी ने कौरव कुल के नाश की सौगंध खा ली थी और उसके लिए उसने दुर्योधन को अपना मोहरा बना लिया था हर समय बस अवसर तलाश होता था जिसके चलते कौरव और पांडवों में भयंकर युद्ध हो जाए और कौरवों की जान चली जाए जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के युवराज घोषित हुए तो शकुनी ने ही लाक्षागृह का षड्यंत्र रचा और सारे पांडवों को वहां जिंदा जलाकर मार डालने का प्रयत्न किया शकुनी किसी भी तरीके से दुर्योधन को हस्तिनापुर का राजा बनते देखना चाहता था ताकि उसका दुर्योधन पर मानसिक आधिपत्य रहे और इस मूर्ख दुर्योधन की सहायता से भीष्म और कुरु कुल का जो है विनाश कर सके इसीलिए उसने पांडवों के प्रति दुर्योधन के मन में वैर भाव जगाया और उसे कहा तुम्हें तो सत्ता लेनी होगी शकुनी के कारण ही महाराज धृतराष्ट्र की ओर से पांडवों और कौरवों में होने वाले विभाजन के बाद पांडवों को एक बंजर जो पड़ा क्षेत्र था वो सौंपा गया |
लेकिन पांडवों ने उसे इंद्र प्रस्थ में बदल दिया वहां जब बुलाया गया कौरवों को और उन्होंने जब महल में प्रवेश किया तो वहां एक विशाल कक्ष में पानी की उस भूमि को दुर्योधन ने गलती से असल भूमि समझकर उस पर पैर रख दिया और पानी में गिर पड़ा ये देखकर के पांडवों की पत्नी द्रौपदी हंस पड़ी और कहने लगी कि कंधे का पुत्र अंधा होता है ये सुनकर के दुर्योधन बहुत गुस्से में आ गया और उसके में जो बदले की भावना चल रही थी उसको शकुनी ने हवा दी और कहा कि बस अब पासों का खेल करते हैं योजना बताई दुर्योधन को और कहा कि तुम इस खेल में इनको हरा कर के बदला ले सकते हो खेल के जरिए पांडवों को मात देने के लिए शकुनी ने बहुत प्रेम भाव से सारे पांडु पुत्रों को खेलने के लिए आमंत्रित किया और फिर शुरू हुआ दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच में पासा फेंकने का खेल यानी कि चौसर का खेल जिस तरीके से पैर से लंगड़ा था सकोनी लेकिन चौसर में और द्यूत क्रीड़ा में बहुत प्रवीण था चौसर की महारथ ऐसी थी कि जो चाह आता था वही अंक पासों पर आता था पासों को उसने सिद्ध कर लिया था उंगलियों के घुमाव पर ही पासों के अंक पहले से प्री डिसाइडेड रहते थे और शुरुआत में पांडवों का उत्साह बढ़े उन्हें मजा आया इसलिए शुरुआत में पांडवों को जिताया और उसके बाद जो है उनको हराना शुरू किया धीरे-धीरे खेल के उत्साह में युधिष्ठिर सारी दौलत सारा साम्राज्य हारने लगे सारी संपत्ति हारने लगे जब सब हार गए तो शकुनी ने कहा कि देखो सब कुछ वापस मिल जाएगा अगर तुम अपने भाइयों को और अपनी पत्नी को दांव पर लगा दो मजबूर होकर के युधिष्ठिर ने शकुनी की बात को मान लिया और अंत में यह पारी भी युधिष्ठिर जो महाराज थे वो हार गए इस खेल में पांडवों का द्रौपदी का अपमान हुआ और कुरुक्षेत्र के युद्ध का सबसे बड़ा कारण यही बना मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत के युद्ध का प्रारंभ हुआ 18 दिनों तक युद्ध चला युद्ध के पहले दिन पांडव पक्ष को भारी हानि हुई दूसरे दिन पांडवों का अधिक नुकसान नहीं हुआ द्रोणाचार्य ने दृष्ट दमन को कई बार हराया पितामह भीष्म ने अर्जुन को कई बार घायल किया अर्जुन ने पितामह भीष्म को रोके रखा तीसरे दिन जो महाबली भीम थे |
उन्होंने घटोत कच के साथ मिलकर के दुर्योधन की से को युद्ध से भगा दिया इसके बाद पितामह भीष्म ने भीषण संहार मचा दिया भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि आप पितामह भीष्म का वध कीजिए लेकिन उत्साह में वो युद्ध नहीं कर पा रहे थे तो भगवान श्री कृष्ण स्वयं जो है पितामह भीष्म को मारने के लिए दौड़े अर्जुन ने कहा मैं आपको जो है प्रण लेता हूं आपको भरोसा दिलाता हूं कि इनका जो है वध जरूर करूंगा यह सब हुआ फिर लगातार जो है युद्ध चलता चला गया लेकिन मामा शकुनी अभी युद्ध में जो है डटे हुए थे 18 दिन बीत चुके थे कहते हैं कि महाभारत में शकुनी के परिवार के बारे में ज्यादा तो नहीं बताया लेकिन इतना बताया कि पत्नी का नाम आर्शी था तीन बेटे बेटे थे उलूक वृ कासुर और वृप चिट्टी उलूक जो था वो भी महाभारत की लड़ाई में मारा गया था वृ कासुर का वध भी इसी युद्ध में हुआ था वृप चिट्टी वहां जीवित रहा और बाद में गांधार का राजा बना था ऐसे कहा जाता है तो 18वें दिन शकुनी के पास में 500 घोड़े थे 200 रथ थे 100 हाथी थे हजार सैनिकों की पैदल सेना थी और डटा हुआ था उस दिन कौरवों की सेना को बहुत नुकसान हुआ था ऐसा लग रहा था कि कौरवों की हार तय है तभी शकुनी और उसका पुत्र उलूक जो है सहदेव की ओर दौड़े सहदेव के भाले से उलूक का सिर खंडित हो गया मारा गया शकुनी को और क्रोध आया और तेजी से युद्ध करने लगा उसे अपने बे बेटे की मृत्यु का आघात लगा था उसने सहदेव पर भीषण शक्ति अस्त्र का प्रहार किया सहदेव ने बाण द्वारा उस शक्ति को निष्क्रिय किया और भाले के आघात से शकुनी के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया कुरुक्षेत्र के युद्ध में शकुनी ने दुर्योधन का साथ दिया था शकुनी जितनी नफरत जितनी घृणा कौरवों से करता था उतनी पांडवों से करता था क्योंकि उसको दोनों की ओर से दुख मिला था पांडवों ने जो है शकुनी को बहुत कष्ट दिए थे भीम ने अनेक अवसरों पर परेशान किया था लेकिन महाभारत के युद्ध में अंत में सहदेव ने शकुनी का पुत्र सहित वध कर दिया शकुनी जो एक ऐसा किरदार जो कौरवों को विश्वास में लेता है पांडवों के साथ युद्ध में धकेल होता है हर चाल का सूत्रधार बनता है द्रौपदी का चीर हरण होता है तो उसके पीछे का कारण शकुनी है वनवास काटकर जब लौटे पांडव उन को पांच गांव नहीं मिलते हैं उसके पीछे का कारण शकुनी है शांति दूध बनकर भगवान श्री कृष्ण पहुंचे उनको बेरंग लौटना पड़ा उसका कारण भी शकुनी है इसीलिए मैंने कहा कि आप ध्यान रखिए आप किससे सलाह ले रहे हैं क्योंकि दुर्योधन मामा शकुनी से सलाह लेता था और धनुर्धर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से |