जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान 1192 ईसवी में विश्वासघात के कारण तराइन की दूसरी लड़ाई हार गए तो सब कुछ उन्होंने छोड़ दिया और कई दिनों तक जंगलों में भटकते रहे एक दिन उनकी मुलाकात एक बूढ़े व्यक्ति से हुई जो बहुत ही लंबा चौड़ा हट्टा कट्टा आदमी था लेकिन उसके माथे पर घाव था क्योंकि सम्राट पृथ्वीराज चौहान आयुर्वेद के अच्छे जानकार थे इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि आपके घाव को ठीक कर सकता हूं उन्होंने हर संभव मदद की लेकिन वो घाव ठीक नहीं हुआ इसलिए उन्होंने पूछ लिया उस बूढ़े आदमी से कि क्या आप अश्वत्थामा है क्योंकि आपके घाव ठीक नहीं हो सकते उस बूढ़े आदमी ने सिर हिलाया और वहां से चला गया कहा जाता है कि अश्वथामा आज भी जीवित है और कलयुग के अंत का यानी कि भगवान कल्की के जन्म का अपने शाप से मुक्ति का आज भी इंतजार कर रहा है प्रतीक्षा कर रहा है आज के इस वीडियो में कथाएं विद में कथा है अश्वत्थामा की आपके साथ मैं हूं |
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Hindi – 6
आर्ज कार्तिक महाभारत ऐसा महाकाव्य है जो कि हिंदू धर्म का आधार है महाभारत महाकाव्य भगवान श्री गणेश जी के हाथों से लिखा गया वेद व्यास जी से बोल रहे थे कहा जाता है कि ये जो युद्ध हुआ इसमें कौरवों की ओर से गुरु द्रोणाचार्य ने भाग लिया था लेकिन गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु थे अश्वत्थामा इन्हीं गुरुजी का पुत्र था और उसका जन्म महाभारत काल में यानी कि द्वापर युग में हुआ था द्रोणाचार्य को संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी महाभारत युद्ध से पूर्व की बात है गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुए ऋषिकेश पहुंचे और वहां तमसा नदी के तट पर एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक शिवलिंग है वहां पर उन्होंने और उनकी की पत्नी ने माता कृपी ने तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और कुछ समय के पश्चात एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ जन्म के बाद में वो बच्चा घोड़े की तरह हिन हिना रहा था इसलिए द्रोणाचार्य ने अपने बच्चे का नाम अश्वत्थामा रख दिया जन्म से ही अश्वथामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी जो कि उसे दैत्य दानव शस्त्र व्याधि देवता नाग आदि से निर्भय रखती थी और यह मणि बुढ़ापे भूख प्यास और थका से भी बचाती थी कहा जाता है कि भगवान शिव जी ने अश्वथामा को अजय अमर बना दिया अश्वथामा की माता का नाम कृपी था कृपी और द्रोणाचार्य दोनों ने संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया युद्ध का युद्ध कला में विशेषज्ञ थे द्रोणाचार्य लेकिन तब भी बहुत सादा जीवन जीते थे इसलिए बच्चे का बचपन कठिन हो गया उनका परिवार दूध का खर्चा उठाने में भी असमर्थ था तब द्रोणाचार्य अपने पुराने मित्र द्रुपद से सहायता मांगने के लिए पांचाल साम्राज्य में गए लेकिन द्रुपद ने उनका अपमान कर दिया कहा जाता है कि द्रुपद ने कहा कि एक राजा और एक भिकारी जो है मित्र नहीं हो सकते इसके बाद जो द्रोणाचार्य थे बड़े व्यथित हो गए और तब उन पर नजर पड़ी भीष्म पितामह की जो कि एक अच्छे गुरु की तलाश में थे जो कि कौरवों को और पांडवों को दोनों को शिक्षा दे पाए पितामह भीष्म ने गुरु द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर बुला लिया था और गुरुजी जो थे वह कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु बन चुके थे कौरवों को पांडवों को तो शिक्षा दे ही रहे थे शस्त्र और शास्त्र की साथ में अपने बेटे अश्वथामा को भी गुरु द्रोणाचार्य जो है |
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Gujarati – 6
पढ़ा रहे रहे थे और गुरुजी का पूरा य इस पर ध्यान रहता था कि अश्वत थामा को भी ज्यादा सीखने को मिले क्योंकि पुत्र मोह उनमें बहुत ज्यादा था कहा जाता है कि इसी दौरान अश्वत्थामा और दुर्योधन अच्छे मित्र बन गए थे आचार्य अपने पुत्र से बड़ा मोह रखते थे और उसको भी युद्ध कला का पूरा जो है ज्ञान दे रहे थे और मोह की वजह से वो भेदभाव करते थे अश्वथामा में कौरव और पांडवों के बीच में उनकी कोशिश रहती थी कि बच्चे को ज्यादा से ज्यादा अच्छा से अच्छा ज्ञान मिल जाए बाकी जो विद्यार्थी थे उनकी अपेक्षा व अश्वत थामा को सरल पाठ देते कि इजली उसको याद हो जाए सारे विद्यार्थी जो थे उनको रोजाना मटके से पानी भरकर जो आश्रम लाना होता था और जो विद्यार्थी सबसे पहले पानी भर करर आ जाता था उसको ज्यादा ज्ञान मिलता था द्रोणाचार्य जी ने सबके लिए नियम बनाया था लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने अपने बेटे अश्वथामा को छोटा घड़ा दिया था यह बात बालक धनुर्धर अर्जुन को समझ में आ गई इसलिए वो पानी लेकर के पहुंचने में बिल्कुल भी देरी नहीं करते थे जब द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दे रहे थे उस वक्त उस समय उनके पास में अर्जुन और अश्वत थामा दोनों पहुंच गए अर्जुन ने पूरी एकाग्रता के साथ विद्या सीख ली लेकिन अश्वत थामा ने ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान लिया ब्रह्मास्त्र को आमंत्रित करना तो सीख लिया लेकिन वापस भेजना नहीं सीखा क्योंकि अश्वथामा को लगा कि द्रोणाचार्य तो मेरे पिता हैं इनसे मैं जब चाहूंगा सीख लूंगा और पुत्र मोह में भी द्रोणाचार्य ने अश्वथामा के साथ में सख्ती नहीं की क्योंकि द्रोणाचार्य वैसे तो पांडवों और कौरवों के गुरु थे लेकिन वचन से बंधे होने के कारण महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से वो युद्ध लड़े कौरवों की सेना के सेनापति भी बने युद्ध के दसवें दिन जब पितामह भीष्म जो थे वो युद्ध के मैदान से हट गए और मृत्यु शही पर थे तो द्रोण को सेनाओं का सेनापति नियुक्त किया गया कहा जाता है |
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English – 6
कि द्रोणाचार्य के युद्ध कौशल के आगे पांडवों की सेना कमजोर पड़ रही थी एक समय में ऐसा आ गया समय कि अश्वथामा और द्रोणाचार्य जो थे वो पांडवों की सेना और भारी पड़ रहे थे भगवान कृष्ण को मालूम था कि सशस्त्र द्रोण को हराना जो है वो मुश्किल है तो उनको लगा कि छल से हराया जा सकता है अश्वत थामा नाम का हाथी था महाभारत में मालव नरेश इंद्र वर्मा का और गुरु द्रोणाचार्य पांडवों की विजय में जो सबसे बड़ी बाधा थी उसके रूप में उपस्थित थे भगवान श्री कृष्ण के कहने पर भीम ने अश्वथामा नाम के हाथी का वध कर दिया क्योंकि पुत्र का नाम भी अश्वथामा था द्रोणाचार्य के और उस हाथी का नाम भी अश्वथामा था तो जैसे ही उन्होंने सुना कि अश्वथामा की मृत्यु हो गई है वो जमीन पर गिर गए युधिष्ठिर के रथ के सामने पहुंचते उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि क्या यह सत्य है कि अश्वथामा की मृत्यु हो चुकी है तब युधिष्ठिर ने भी कहा कि हां अश्वथामा मारा गया परंतु हाथी लेकिन जब उन्होंने परंतु हाथी का उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने शंख नाद कर दिया जिससे गुरुजी को सिर्फ यही सुनाई दिया कि उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई है वो सारे शस्त्र जमीन पर डाल गए उन्होंने डाल दिए और शोक मनाने लगे तभी जो है द्रौपदी के भाई दृष्ट दमन ने उनका सिर जो था धर से अलग कर दिया अश्वत थामा को जब ये बात मालूम चली कि पिताजी की मृत्यु हो गई क्रोध में पागल होकर के पांडवों की सेना के एक बड़े हिस्से को उसने तहस नहस कर दिया अपने पिता को धोखे से मारे जाने के बारे में जानने के बाद क्रोध में आकर उसने पांडवों के खिलाफ नारायणास्त्र नामक दिव्य हथियार का इस्तेमाल किया जब उसका आह्वान किया तो हवाएं चलने लगी गड़गड़ाहट की आवाज होने लगी हर पांडव सैनिक के लिए एक तीर दिखाई देने लगा इससे पांडव सेना में भय व्याप्त हो गया भगवान श्री कृष्ण सैनिकों को रोकते हुए सलाह देते हैं कि सब अपने अस्त्र छोड़ दें शस्त्र समर्पण कर दें भगवान श्री कृष्ण स्वयं नारायण का अवतार थे इसलिए अस्त्र के बारे में जानते थे क्योंकि वह एक सशस्त्र व्यक्ति को ही निशाना बनाता है बाकी को इग्नोर कर देता है निता करने के बाद अस्त्र बिना किसी हानि के वहां से निकल जाता है नारायणास्त्र जब अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण को नुकसान नहीं पहुंचा पाया क्योंकि दोनों ही दिव्य थे नारायणास्त्र की भी अपनी कथा है पूर्व काल में गुरु द्रोण ने भगवान नारायण जी को प्रसन्न किया और नारायणास्त्र की प्राप्ति की फिर अपने बेटे को दे दिया और कहा कि किसी पर भी सहसा उसका आघात मत करना लेकिन अश्वत थामा ने महाभारत के युद्ध में दृष्ट दमन को उसी अस्त्र से मारने का निश्चय किया भगवान श्री कृष्ण तो स्वयं नारायण थे उन्हें पता था कि क्या निराकरण है |
तो उन्होंने सलूशन बता दिया सैनिकों को और कहा कि अपने शस्त्र जो है उनको त्याग दीजिए सबने शस्त्र त्याग दिए तो नारायणास्त्र असर नहीं दिखा पाया उसके प्रयोग के बाद में दोनों सेनाओं के बीच में भयानक युद्ध हुआ अश्वथामा ने सीधे युद्ध में जो है हरा दिया दृष्ट दमन को लेकिन साति की और भीम जैसे योद्धा मौजूद थे इसलिए ट दमन को मार नहीं पाया कुछ सैनिकों ने जवाबी जो है लड़ाई की कोशिश की लेकिन अश्वत थामा जो है बहुत शक्तिशाली था बहुत सारी क्षमताएं थी इसलिए सुरक्षित रहा जो भी लोग उसके क्रोध से भागने की कोशिश करते थे उन्हें शिविर के प्रवेश द्वार पर कृपाचार्य और कृत वर्मा जो है वो मार देते थे 18 दिन तक ये महाभारत का युद्ध चला जब अश्वथामा को मालूम चला कि दुर्योधन का भी वध हो गया है तो क्रोध में अंधा हो गया और पांडवों के कक्ष में चला गया शिविर में उसे लहा कि पांडव सोए हुए हैं जबकि वहां पर द्रौपदी के पांच बेटे सोए हुए थे पांडव समझ कर के उसने सबका वध कर दिया और जब ये बात पांडवों को पता चली तो पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ चले गए भयंकर युद्ध फिर से शुरू हुआ जहां अश्वथामा ने पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और जब उसने ब्रह्मास्त्र निकाला आमंत्रित किया तो उस समय धनुर्धर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र को आमंत्रित किया और भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि अगर दो ब्रह्मास्त्र एक दूसरे से टकराएंगे तो प्रलय आ जाएगा इसलिए उन्होंने अर्जुन से कहा कि आप अपना ब्रह्मास्त्र वापस लीजिए अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र को वापस ले लिया लेकिन अश्वत थामा नहीं नहीं जानता था जैसे मैंने बताया कथा की शुरुआत में अश्वथामा को नहीं पता था कि वापस कैसे जो है लिया जाएगा ब्रह्मास्त्र इस वजह से उसने उस ब्रह्मास्त्र को चला दिया अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की विधवा पत्नी के कोख में पल रहे बच्चे की ओर और इस घटना से भगवान श्री कृष्ण बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने श्राप दिया अश्वथामा को कि जब तक पृथ्वी है तब तक तुम जीवित रहोगे और यूं ही भटकते रहोगे कहा जाता है कि अश्वथामा का जो अंत है वो तब होगा जब भगवान कल्की का अवतार होगा तो अश्वथामा इसी धरती पर भटक रहा है भगवान कल्की के अवतार की प्रतीक्षा में ये